Commercial and industrial Vastu (व्यावसायिक और औद्योगिक वास्तु)

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व्यावसायिक वास्तु का निर्माण भी आवासीय वास्तु के मूल सिद्धान्तों पर ही निर्मित किया जाता है। सर्वप्रथम भूखण्ड चयन, भूमि परीक्षण, भू-प्लव, वेध, द्वार आदि का विचार कर ही व्यावसायिक वास्तु का निर्माण किया जाता है। वास्तुशास्त्र में सिंहमुखी भूखण्ड को व्यवसाय के लिए उत्तम कहा गया है। इसमें व्यवसाय करने वाला एवं ग्राहक दोनों को केन्द्र मानकर वास्तु के मूलसिद्धान्तों को दिशानुसार निर्धारित किया जाता है।

परिचय

व्यावसायिक भवन में मुख्यतः दुकान, शोरूम एवं मॉल, भण्डार गृह (Store Room) को मुख्य रूप से देखा जाता है। इनके निर्माण में वर्गाकार, आयताकार अथवा सिंहमुखी भूखण्ड श्रेष्ठ होता है। जिसमें कुछ मूलभूत सिद्धान्त निम्नलिखित हैं - [1]

2. भूखण्ड के पूर्व या उत्तर में सड़क होना श्रेष्ठ है। भूखण्ड के दोनों ओर मार्ग भी शुभ है। भूखण्ड के दक्षिण दिशा में द्वार वास्तुशास्त्र में प्रायः शुभ नहीं कहा है। भवन का द्वार पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होना चाहिए। अन्य दिशाओं में द्वार साधारण व आग्नेय वायव्य कोणों में द्वार अशुभ होता है।

3. भूखण्ड चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि नैर्ऋत्य एवं दक्षिण का स्थान ऊँचा व ईशान नीचा हो।

4. ईशान कोण खुला रखना चाहिए व ईशान में किसी भी प्रकार का निर्माण नहीं करना चाहिए।

5. विद्युत यन्त्रों का प्रयोग जैसे जरनेटर, बिजली का मीटर, स्विचबोर्ड, पैन्ट्री या रसोई आग्नेय कोण में स्थापित करने चाहिए।

6. सार्वजनिक सुविधाओं हेतु शौचालय नैऋत्य दक्षिण के बीच बनाना श्रेष्ठ होता है। वैकल्पिक स्थिति में पश्चिम में भी शौचालय का निर्माण किया जा सकता है।

7. भवन का मध्य भाग खाली रखना चाहिए। अतः इस स्थान में किसी भी प्रकार का निर्माण सर्वथा वर्जित है। इस स्थान पर औषधियुक्त पौधा लगाया जा सकता है।

8. मुख्य व्यक्ति का कक्ष अथवा बैठने का स्थान नैर्ऋत्य अथवा पश्चिम में होना शुभ है। जिससे उसका मुख सदैव ईशान या पूर्व की ओर रहे।

उद्धरण

  1. डॉ० देशबंधु, वास्तु शास्त्र का परिचय व स्वरूप, सन २०२१, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी (पृ० १७५)।